मनोरंजक कथाएँ >> कुत्ते की दुम कुत्ते की दुममृत्युंजय
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हास्य-व्यंग्य से भरपूर शिक्षाप्रद कथा- विशेषतया नव साक्षरों व उत्तर साक्षरता अभियान के लिए)
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
कुत्ते की दुम
कुत्ते की दुम बारह वर्ष गाढ़ी, फिर भी टेढ़ी की टेढ़ी। शायद ही कोई ऐसा
होगा, जिसने यह कहावत नहीं सुनी होगी, कहावतें होती ही सुनने के लिए हैं।
इस कान से सुना, उस कान से निकाल दिया, यह रह गया है-कहावतों का महत्त्व।
कहावतों को बासी नहीं पड़ने देने के लिए लोग फिर जमीन से जुड़ रहे हैं। दीनानाथ भाई यानी ताऊजी इस क्षेत्र में पहचाने जा रहे हैं। वह अक्सर ऊट पटांग कहावत को लेकर किस्सा सुनाया करते हैं। वह सुनाते हैं-
नौहर राजस्थान में है। आज से पाँच सौ बरस पहले की बात। तब नौहर छोटा-सा गाँव था। आजकल की तरह मोटा कस्बा नहीं था तब।
दो प्रौढ़ राजस्थानी, पगड़ी-वगड़ी बाँधे, सात-आठ ऊँटों को हाँकते आ रहे थे। आ शायद दूर से रहे थे। उनमें से एक की टाँग में खुजली मची दूसरे ने उस खुजली को महसूस किया। अचानक उनमें से एक के मन में यह विचार आया कि ऊँट की पिछली टाँग पर एक पाँव रखकर चलें। उसने अपना विचार दूसरे के सामने रखा। दोनों में कौतूहल ने करवट ली। दोनों में बदा-बदी शुरू हो गई-कौन कितनी दूर तक ऊँट की पिछली टाँग पर एक पाँव रखे चल सकता है।
अब पहला वाला ऊँट पर टाँग टेके चलने लगा। उसे यह नया अनुभव था। दूसरा डग गिनता जा रहा था, ताकि उससे यह पता चल सके कि वह कितने डब ऊँट की पिछली टाँग पर अपनी टाँग टेके चल सका।
ऐसा करते हुए वे दोनों नौहर गाँव से गुजरे। बच्चों ने ऐसा अजूबा देखा। वे दौड़े-दौड़े गाँव के अंदर यह कहते हुए गए, ‘‘ऊँट पर टाँग !’’ जल्दी-जल्दी बोलने से वह हो गया ऊँटपटांग।
कहावतों को बासी नहीं पड़ने देने के लिए लोग फिर जमीन से जुड़ रहे हैं। दीनानाथ भाई यानी ताऊजी इस क्षेत्र में पहचाने जा रहे हैं। वह अक्सर ऊट पटांग कहावत को लेकर किस्सा सुनाया करते हैं। वह सुनाते हैं-
नौहर राजस्थान में है। आज से पाँच सौ बरस पहले की बात। तब नौहर छोटा-सा गाँव था। आजकल की तरह मोटा कस्बा नहीं था तब।
दो प्रौढ़ राजस्थानी, पगड़ी-वगड़ी बाँधे, सात-आठ ऊँटों को हाँकते आ रहे थे। आ शायद दूर से रहे थे। उनमें से एक की टाँग में खुजली मची दूसरे ने उस खुजली को महसूस किया। अचानक उनमें से एक के मन में यह विचार आया कि ऊँट की पिछली टाँग पर एक पाँव रखकर चलें। उसने अपना विचार दूसरे के सामने रखा। दोनों में कौतूहल ने करवट ली। दोनों में बदा-बदी शुरू हो गई-कौन कितनी दूर तक ऊँट की पिछली टाँग पर एक पाँव रखे चल सकता है।
अब पहला वाला ऊँट पर टाँग टेके चलने लगा। उसे यह नया अनुभव था। दूसरा डग गिनता जा रहा था, ताकि उससे यह पता चल सके कि वह कितने डब ऊँट की पिछली टाँग पर अपनी टाँग टेके चल सका।
ऐसा करते हुए वे दोनों नौहर गाँव से गुजरे। बच्चों ने ऐसा अजूबा देखा। वे दौड़े-दौड़े गाँव के अंदर यह कहते हुए गए, ‘‘ऊँट पर टाँग !’’ जल्दी-जल्दी बोलने से वह हो गया ऊँटपटांग।
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